हिमाचल के सिरमौर जिले से: जब एक लड़की ने की दो भाइयों से शादी
कहानी की शुरुआत: 25 साल पुराना एक अनोखा रिश्ता
हिमाचल प्रदेश का सिरमौर जिला, जहां आज भी परंपराएं जीवन का अहम हिस्सा हैं। करीब 25 साल पहले, यहीं के एक गांव में एक 16 साल की लड़की सुनीला की शादी एक गरीब परिवार में हुई। वह परिवार इतना साधारण था कि उनके पास रहने के लिए सिर्फ एक ही कमरा था, जिसमें पूरा परिवार साथ रहता था।
कुछ समय बाद उसका पति शहर कमाने चला गया। घर में बचे सिर्फ उसकी सास-ससुर, और उसका देवर जो उस समय चौथी कक्षा में पढ़ता था। सुनीला घर की जिम्मेदारी संभालती रही — देवर की पढ़ाई, खाना बनाना, सास-ससुर की सेवा सब कुछ।
एक चौंकाने वाला प्रस्ताव
कुछ समय बाद उसका पति जब घर लौटा तो उसने खुद ही एक अनोखा सुझाव दिया। उसने कहा, "जब मैं बाहर होता हूँ, तो मेरा छोटा भाई तुम्हारा ख्याल रखेगा। क्यों न तुम उससे भी शादी कर लो?" सुनीला हैरान रह गई। लेकिन पति की बात ससुराल के अन्य लोग भी समर्थन करने लगे।
कहा गया कि ये कोई नई बात नहीं, ये गांव की पुरानी परंपरा है। कुछ दिन सोचने के बाद सुनीला ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। गुपचुप ढंग से उसकी दूसरी शादी उसी देवर से कर दी गई।
दो पतियों के साथ जीवन
समय के साथ ये रिश्ता सामान्य हो गया। सुनीला दोनों भाइयों को "बड़ा घरवाला" और "छोटा घरवाला" कहकर बुलाती थी। वह दोनों के साथ मिल-जुलकर रहती थी और चार बच्चों की मां बनी। गांव में लोग इसे अजीब नहीं मानते थे, बल्कि इसे एक सामाजिक व्यवस्था का हिस्सा मानते हैं।
2025 की ताजा घटना: दो भाइयों की एक दुल्हन
आज भी हिमाचल में इस परंपरा की मिसालें देखने को मिलती हैं। जुलाई 2025 में सिरमौर जिले के शिलाई गांव में दो भाइयों — प्रदीप नेगी और कपिल नेगी — ने एक ही लड़की से शादी की।
लड़की का नाम था सुनीता चौहान, जो कुनहाट गांव से थी। जब दोनों भाइयों को लड़की की तस्वीर दिखाई गई, तो दोनों को वह पसंद आ गई। परिवार ने मिलकर निर्णय लिया कि दोनों की शादी एक ही लड़की से की जाएगी।
शादी का दिन: दो दूल्हे, एक दुल्हन
12 जुलाई 2025 को दोनों भाई दूल्हे बनकर एक ही बारात में निकलते हैं। गांव में हर कोई हैरान था लेकिन उत्साहित भी। बारात लड़की के गांव पहुंची, जहां दोनों के साथ पारंपरिक रीति-रिवाजों से शादी हुई।
सुनीता दोनों की दुल्हन बनी और अगली सुबह गांव में करीब 4000 लोगों के लिए भव्य भोज रखा गया। किसी ने इसे बुरा नहीं माना — बल्कि यह शादी पूरे इलाके में चर्चा का विषय बन गई।
बहुपति प्रथा: क्या है इसकी जड़?
इस प्रकार की शादी को बहुपति प्रथा कहा जाता है। कुछ लोग इसे जोड़ी धन प्रथा या द्रौपदी प्रथा भी कहते हैं। इस परंपरा का उद्देश्य है:
- पारिवारिक संपत्ति का बंटवारा रोकना
- भाइयों में झगड़ा न हो
- खेती-बाड़ी एकसाथ चले
- महिला को विधवा होने से बचाना अगर एक पति की मृत्यु हो जाए
कानून और दस्तावेज़ी पहचान
सरकारी दस्तावेजों में बच्चे किसके हैं, इसका रिकॉर्ड “वाजिब उल अर्ज़” के तहत तैयार किया जाता है। इससे स्कूल या किसी भी सरकारी फॉर्म में एक पिता का नाम लिखा जा सके।
क्या यह परंपरा अब भी जीवित है?
जी हां। गांव के कई बुजुर्ग बताते हैं कि यह प्रथा उनकी 4-5 पीढ़ियों से चलती आ रही है। गांव शिलाई के विष तोमर बताते हैं कि आज भी यहां 36 ऐसे परिवार हैं, जहां एक महिला के दो पति हैं — और वो भी सगे भाई।
मीना देवी नाम की एक महिला की शादी तीन भाइयों से हुई थी। उन्होंने माना कि यह जीवन आसान नहीं था। इसलिए उन्होंने अपने बेटों की शादियां अलग-अलग लड़कियों से करवाईं।
निष्कर्ष: परंपरा या आधुनिकता?
जहां एक ओर समाज बदलाव की ओर बढ़ रहा है, वहीं कुछ परंपराएं आज भी जीवित हैं, जो अपने पीछे सामाजिक और सांस्कृतिक सोच को लेकर चलती हैं। हिमाचल की यह बहुपति परंपरा भले ही अनोखी लगे, लेकिन इसके पीछे गहरी सामाजिक व्यवस्था छुपी है — परिवार को एकजुट रखने की कोशिश।
यह लेख एक सामाजिक विषय पर आधारित है, जिसका मकसद केवल पाठकों को अलग-अलग सांस्कृतिक पहलुओं और ग्रामीण जीवन की परंपराओं से परिचित कराना है।
इसमें साझा की गई जानकारी विभिन्न स्रोतों से ली गई है, जिसमें विशेष रूप से Usman Saifi Safar YouTube चैनल के एपिसोड 1330 का उल्लेख किया जाना उचित समझा गया।
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